वो कोरे पन्ने पर दो शेर लिख कर छोड़ देता है
हर आने-जाने वाला ख़ुद को जिनसे जोड़ लेता है
वो कुछ दो-चार चेहरे दिल के जो नज़दीक होते हैं
उन्हें ये वक्त अक्सर रास्ते में छोड़ देता है
मेरे लहज़े को तुम इतना भी कोई सख़्त मत समझो
बता दूँ बोलना मेरा दिलों को जोड़ देता है
दिल-ए-नादाँ की ख़्वाहिश रब के आगे कब ठहरती है
तमन्ना बढ़ती जाती है वो जितना और देता है
मिलो जिससे भी उसके दिल में अपना घर बना जाओ
जुदा हो जैसे कोई फूल डाली छोड़ देता है…
– रवि प्रकाश ‘रवि’
बह्र: 1222/1222/1222/1222
तमन्ना : desire
लहज़ा : accent